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आदिवासी समाज ने दिखाया सरकार को संविधान का आईना,भू राजस्व संहिता संशोधन विधेयक पर लिया यू टर्न

छत्तीसगढ़ भू राजस्व संहिता संशोधन विधेयक को सरकार ने वापस लेने का फैसला किया है, ये फैसला कैबिनेट की बैठक में लिया गया, छत्तीसगढ़ सरकार ने यह कदम आदिवासी समाज के बढ़ते विरोध के मद्देनजर उठाया है. कैबिनेट की बैठक से पहले सर्व आदिवासी समाज ने मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह से मुलाक़ात कर इसे वापस लेने की मांग की थी. आदिवासी समाज का कहना था कि यह विधेयक संविधान के विपरीत काला कानून है, वही प्रदेश की विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने इसे उधोगपतियो को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाया था.
जानकारी हो कि भू राजस्व संशोधन विधेयक में बीजेपी घिरती नजर आ रही थी, चुनावी साल में सरकार का यह फैसला भारी पड़ सकता था. माना जा रहा है कि इसीकारण वश सरकार ने अपने कदम वापस खीच लिए.


जानकरी हो कि इस बार के छत्तीसगढ़ विधानसभा के शीतकालीन सत्र 21 दिसम्बर को विपक्ष के भारी विरोध के बिच सरकार ने भू राजस्व संहिता संशोधन विधेयक पारित किया गया था. राजस्व मंत्री प्रेम प्रकाश पांडे ने संशोधन विधेयक पेश करते हुए कहा था कि भू अजर्न कि प्रक्रिया सरल होने से विकास में आ रही अडचने दूर होगी. विधेयक पारित होने के 24 घंटे के भीतर ही आदिवासी समाज ने संविधान के विपरीत काला कानून बताते विरोध शुरू कर दिया था, सरकार ने विरोध को देखते हुए बीजेपी के आदिवासी विधयाको को भी सरकार का पक्ष रखने सामने किया था लेकिन आदिवासी समाज ने उन बीजेपी विधायको का भी सामाजिक बहिष्कार कर लगातार विरोध करते रहे.

बस्तर संभाग के सर्व आदिवासी समाज के संभागीय अध्यक्ष प्रकाश ठाकुर ने कहा कि यह संविधान की जीत है सरकार संविधान के विपरीत गैरसंवैधानिक कार्य नही कर सकती, उन्होंने आगे कहा कि सडक की लड़ाई के साथ संवैधानिक लड़ाई भी लडी गई संशोधन विधेयक के खिलाफ बस्तर से 5000 से भी ज्यादा  ग्राम सभा के प्रस्ताव राज्यपाल को भेजे गए थे. 

आदिवासी समुदाय ने लैंड रेवेन्यु रूल्स 1879,1921,1972 भारत सरकार अधिनियम 1935, भारत का संविधान के अनुच्छेद 13(3)क, 19(5),19(6),244(1) पांचवी अनुसूचि का पैरा 2 व पांच जिसमें अनुसूचित क्षेत्र में लोकसभा व विधानसभा के कोई विधेयक कानून सीधे लागू नहीं होता का पालन करने हेतु पारम्परिक ग्रामसभाओं के द्वारा आदेश जारी किया गया था। इसी का परिणाम है की सरकार को पीछे हटना पड़ा। आने वाले दिनों में समाज सरकार के द्वारा 70 वर्षों से पांचवी अनुसूचि संविधान को छुपा कर रखे थे इसका मुहतोड़ जवाब दिया जाएगा।संविधान की अवहेलना व उलंघन करने वाले ओ आई जी एस व मंत्रियों के विरुद्ध आई पी सी की धारा 124 क के तहत मामला दर्ज करने का आदेश विधिक पारम्परिक ग्रामसभाओं के द्वारा दिया जायेगा।


पारम्परिक ग्रामसभाओं की आदेश का पालन किया राज्यपाल ने

छत्तीसगढ़ भू राजस्व संहिता संशोधन विधेयक2017 को अनुसूचित क्षेत्र के परंपरागत ग्रामसभाओं ने लैंड रेवेन्यु रूल्स 1879,1921,1972 ,भारत सरकार अधिनियम 1935 के अनुच्छेद 91,92 ,भारत का संविधानअनुच्छेद 13(3)क,19(5),19(6),244(1) के विपरीत पाया। पूरे राज्य के विधिक पारम्परिक ग्रामसभाओं ने  अपने संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए महामहिम राज्यपाल छत्तीसगढ़ को आदेश जारी करते हुए विधेयक में हस्ताक्षर नहीं करने का आदेश जारी किया गया था जिसका पालन महामहिम राज्यपाल ने किया है। इसके लिए पारम्परिक ग्रामसभाओं ने राज्यपाल को धन्यवाद ज्ञापित किया है।
पारम्परिक ग्रामसभा के आदेश का यह दिव्तीय अवसर पालन किया गया है। ज्ञात हो कि सामाजिक बहिष्कार अधिनियम को भी संविधान के विरुद्ध पाकर इस बात पर भी आदेश जारी किया गया था।जिसका अमल विधायिका ने किया था। ग्रामसभाओं को कार्यपालिका, विधयिका व न्यायपालिका का संवैधानिक शक्ति प्राप्त है ग्रामसभा ही लोकतंत्र का आधार है। अब सरकार को चाहिए कि संविधान कि अवहेलना व उलंघन करना बंद कर लीगिल कार्य ही करनी चाहिए ।

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