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क्या नक्सलियों ने जारी किया है पत्रकारों के मौत का फरमान? जवाब ढूढ़ने जंगलों की ख़ाक छानेंगे पत्रकार


क्या नक्सलियों ने जारी किया है पत्रकारों के मौत का फरमान? मुझे 2010 की घटना याद आती है जब दंतेवाड़ा के तीन वरिष्ठ पत्रकारों के नाम से पर्चा जारी कर उनकी हत्या और बस्तर छोड़ने का फरमान सुनाया था लेकिन ये पर्चा नक्सलियों ने नही पुलिस पोषित एक संघ/समिति ने जारी किया था। फिर वो घटना याद आती है जिसमे नक्सलियों ने स्व: पत्रकार साईं रेड्डी के बांसागुड़ा में स्थित घर जला दिया था, पुलिस ने इस हमले का मुंह तोड़ जवाब देते हुए उन्हें जन सुरक्षा अधिनियम के तहत गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था? जेल से बाहर आते ही  नक्सलियों ने उन पर हमला कर हत्या कर डाला?
अभी हाल में 13 नवम्बर को दक्षिण सेंट्रल कमेटी के  सचिव हिड़मा के नाम से जारी पर्चा में गलत रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों को जान से मारने का फरमान नक्सलियों ने निकाला है , पर्चा नक्सलियों के मांद अर्थात जनताना सरकार के गढ़ कहे जाने वाले क्षेत्र में मिला है। सेंट्रल सचिव हिड़मा के नाम से पहली दफा पर्चा जारी हुआ है, पुलिस के अधिकारी खुद अचरज में है। दक्षिण बस्तर सचिव के नाम से पर्चा पश्चिम बस्तर में जारी हुआ  है। पर्चा बीजापुर जिले के उसूर तहसील कार्यालय में चिपका मिला है। बैनर में जनमलिशिया का भी जिक्र है। जनमलिशिया नक्सलियों का सबसे छोटा कैडर होता है। तो क्या उन्होंने ही सचिव के नाम से पर्चा जारी कर दिया?
 नक्सलियों ने गलत रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकार की हत्या की बात कही है? कौन पत्रकार गलत रिपोर्टिंग कर रहा है? या कौन सी रिपोर्टिंग उनको चुभ रही है। फिलहाल इन्ही सब सवालो का जवाब मांगने बीजापुर प्रेस क्लब के तत्वधान में 245 किमी नक्सलियों के मांद में पत्रकार बाइक यात्रा कर जवाब जानने की कोशिश कर रहे है।
क्योकि मौजूदा सरकार पत्रकार और अभिव्यक्ति को स्वतंत्र रख पाने में नाकाम है, वाह खुद इनके हनन में लगी रहती है तो अब जनताना सरकार से जवाब मांगने के बजाय पत्रकारों के पास कोई रास्ता नही है!

आप को बता दे कि छत्तीसगढ़ प्रदेश का माओवादी प्रभावित क्षेत्र बस्तर जहा आए दिन यहाँ की भूमि जनताना सरकार और पुलिस के युद्ध के चलते रक्त रंजित होती है, इन सब के बिच में पत्रकारिता को अंजाम तक पहुँचाना एक चुनौती पूर्ण कार्य है जो बस्तर के पत्रकार बखूबी करते है, बस्तर के पत्रकारों के ऊपर कभी पुलिस का ग़ुस्सा तो कभी नक्सली फरमान के चलते पत्रकार दोधारी तलवार के बीच काम करने पर मजबूर है।
हाल ही में 13 नवम्बर को नक्सलियों द्वारा जारी एक पर्चे में पत्रकारों के ऊपर आरोप लगाते हुए गलत ढंग से रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों को मौत के घाट उतारने की बात कही है. इस घटना से पत्रकारों में काफी रोष व्याप्त हो गया है, पत्रकार सुरक्षित महसूस नही कर रहे है। वही स्थानिय पुलिस ने इस घटना को लेकर कहा है कि आसामजिक तत्वों का करतूत भी हो सकता है. क्योकि दक्षिण बस्तर सेंट्रल कमेटी हिडमा के नाम से पहली दफा पर्चा जारी हुआ है, दूसरी बात यह कि पर्चा पश्चिम बस्तर के बीजापुर जिले के उसूर तहसील में मिला है. बैनर में पश्चिम के बजाय दक्षिण का जिक्र है. हालांकि नक्सलियों ने अभी तक इस पर्चे में किसी भी तरह की सफाई नही दी है न ही खंडन जारी किया है।
आप को बता दे कि इस घटना से आहात पत्रकारों का दल 24 नवम्बर से 27 नवम्बर तक 247 किमी नक्सलियों के मांद में बाइक यात्रा कर ये जानने का कौशिश करेगा कि नक्सलियों ने अगर पर्चा जारी किया है तो पत्रकारों की कौन सी रिपोर्टिंग गलत लगी? बीजापुर प्रेस क्लब ने यह निर्णय लेते हुए घोषणा किया , प्रदेश भर के पत्रकार 24 नवम्बर को बीजापुर में एकजुट होकर बाइक यात्रा करेंगे।
गौरतलब हो कि महीने भर पहले पुलिस वायरलेस का एक कथित आडियो वायरल हुआ था इसमें रिपोर्टिंग कर रहे पत्रकार को पुलिस गोली मारने का आदेश दे रही थी, हालांकि पुलिस विभाग ने इस आडियो का जाँच की घोषणा की थी जिसकी जांच अभी जारी है।

पहले भी पर्चे में धमका चुके पत्रकारों को।

विदित हो साल 2010 में दंतेवाड़ा के तीन वरिष्ठ पत्रकार अनिल मिश्रा, एनआरके पिल्लई , यशवंत यादव को स्वाभिमान मंच के नाम से पर्चा जारी कर बस्तर छोड़ने और जान से मारने की धमकी दी गई थी। उस वक्त एसआरपी कल्लूरी दंतेवाड़ा एसएसपी थे।
बस्तर में बतौर आई जी रहे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी एस आर पी कल्लूरी के बस्तर कार्यकाल में पत्रकारों के ऊपर  अधिकतर पुलिसिया दमन हुआ है, उनके कार्यकाल में पत्रकार प्रभात सिंह, सोमारू नाग, संतोष यादव को फर्जी आरोपो के तहत गिरफ्तार कर जेल भेजा गया, स्क्रॉल की महिला पत्रकार मालिनी सुब्रमण्यम के घर पर पुलिस से सहायता प्राप्त सामाजिक एकता मंच के द्वारा हमला किया गया उन्हें बस्तर छोड़ने पर मजबूर किया गया था, उसी वक्त बीबीसी के पत्रकार आलोक पुतुल के ऊपर भी हमले की साजिश रची गई थी। इन घटनाओं तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बरकार रखने देश भर के पत्रकार बस्तर में एकजुट होकर विरोध जताया था। आप को बता दे कि आईजी एसआरपी कल्लूरी को मानवाधिकार के हनन के चलते बस्तर से हटाया गया था। एडीटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में भी बस्तर के पत्रकारो के ऊपर पुलिसिया दमन होने की बात कही गई थी, यही नही बस्तर में अभिव्यक्ति के आजादी के हनन का भी आरोप लगा था।

पुलिस ही नही नक्सली भी टारगेट करते है पत्रकारों को

जानकारी हो कि इससे पहले 12 फरवरी 2013 को सुकमा के स्व: पत्रकार नेमीचंद जैन को नक्सलियों ने हत्या कर दिया था. तो वही 2013 में ही बीजापुर के स्व: पत्रकार सांई रेड्डी को बासागुडा में रिपोर्टिंग के दौरान हत्या कर दिया था.आप को यह भी बता दे कि हत्या से पहले साईं रेड्डी का घर मोआवादी ने फूंका था बाद में छत्तीसगढ़ पुलिस ने उन पर माओवादी समर्थक होने आरोप लगाकर जनसुरक्षा अधिनियम के तहत उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था.
नक्सलियों द्वारा पत्रकारों की हत्या को लेकर प्रदेश भर के पत्रकार बांसागुड़ा पहुँच कर विरोध जताया था, बस्तर के पत्रकारों ने किसी भी नक्सली रिपोर्टिंग का बहिष्कार कर जनताना सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल जवाब मांगने लगे पत्रकारों की हत्या को लेकर जंगी प्रदर्शन भी किया गया।  पत्रकारों की हत्या को लेकर 22 पत्रकारों का दल अबूझमाड़ पद यात्रा कर शांति का संदेश भी दिया गया।
पत्रकारों के विरोध को देखते हुए  दक्षिण रीजनल कमेटी के सचिव गणेश उइके ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर पत्रकारों की हत्या को पार्टी सदस्यों का चूक माना था, और माफी मांगी थी यही नही और भविष्य में इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति नही होने की बात कही थी । लेकिन हाल ही के नक्सली पर्चे में फिर पत्रकारों की हत्या का फरमान जारी कर दिया गया है।

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