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छतीसगढ़ के किसानों एकजुटता : खेती किसानी के संकट की जिम्मेदार सरकार की नीति और नीयत




रायपुर- छत्तीसगढ़ के अनेक किसान, खेतिहर, आदिवासी संगठनों एवं विस्थापन प्रभावितों के आंदोलनों का साझा सम्मलेन खेती-किसानी बचाने के नये और बड़े आंदोलनों के संकल्प के साथ संपन्न हुआ| छतीसगढ़ के किसानों की यह अब तक की सबसे बड़े स्तर की एकजुटता थी, जिसमे प्रदेश के तक़रीबन हर जिले के प्रतिनिधि शामिल थे| इसे अलग अलग आंदोलनों के नेताओं के साथ कई राष्ट्रीय नेताओं ने संबोधित किया|

अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव तथा नौ बार सांसद रहे हन्नान मौल्ला ने खेती-किसानी के संकटों के बुनियादी सवाल उठाते हुए कहा कि ये सरकारी नीतियां है जो बर्बादी मचा रही है| किसान खेती छोड़ना चाहते है, आत्महत्याएं कर रहे है, बर्बाद हो रहे है| मगर सरकार बजाय राहत देने के उनके ज़ख्मों पर नमक छिड़क रही है| प्रधानमंत्री डेढ़ गुना दाम के वादेपूरे नहीं कर रहे, वनाधिकार कानून लागू नहीं कर रहे| उन्होंने देश में बढ़ती किसान एकता की जानकारी दी कि 187 किसान संगठन कर्ज माफी और पूरे दाम की मांग पर इकट्ठा हुए है| छत्तीसगढ़ के किसान संगठन व आंदोलन भी इसका हिस्सा बनेंगे यह उम्मीद उन्होंने जताई है|

कृषि विशेषज्ञ व अर्थशास्त्री देविंदर शर्मा ने तथ्यों और आंकड़ों के साथ बताया कि 1971 से लेकर आज तक जहाँ बाकी सब की आमदनी दो से तीन सौ गुना बढ़ गई किसान को नाममात्र भी नहीं मिला| लागत का मूल्य तक वसूल न हो पाने के कारण हर 40 मिनट में एक किसान आत्महत्या कर रहा है| इसी अनुपात में अगर धान-गेहूं के समर्थन मूल्य तय कर दिए जाए तोन किसान खेती छोड़ेगा, न नौजवान खेत छोड़कर भागेगा, न आत्महत्याएं होंगी| उन्होंने कहा कि इसके लिए किसान को अपनी एकता बनानी होगी, इस एकता का इस्तेमाल संघर्ष की चोट और चुनावी वोट में करना होगा|

स्वराज अभियान के नेता योगेन्द्र यादव ने संकल्प सम्मलेन को किसान आन्दोलन की कई धाराओं का संगम बताते हुए इसके आयोजन के महत्त्व को रेखांकित किया| उन्होंने कहा कि खेती से जुड़े खाद कंपनी, बीज और कीटनाशक कंपनियां एवं आढतिये व्यापारी सब मालामाल है, सिर्फ किसान ही क्यों तबाह है! इसके लिए उन्होंने सरकार की नीतियों को जिम्मेदार बताया और कहा कि 70 साल से लगातार फसल की कीमतों को दबा कर रखा गया- सरकार की नीतियां ही नहीं, नियत भी ख़राब है| अब किसान इनका समाधान चाहता है, उसे हासिल करने के लिए देश भर के पैमाने पर इकट्ठा हो रहा है| खेती से जुड़े सभी किसानों को पहली बार एक मंच पर लाया गया है| देश के किसानों की मांगों की भी उन्होंने विस्तार से व्याख्या की|

पूर्वकेन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम जी से छतीसगढ़ सरकार द्वारा भू-राजस्व संहिता में किये गए संशोधन को बेहद खतरनाक बताते हुए कहा कि यह आदिवासियों को समाप्त कर देने की बड़ी साजिश का हिस्सा है, जिस से सभी समुदायों को मिल कर लड़ना चाहिए क्यूंकि सिर्फ आदिवासियों की ही जल जंगल जमीन औरजिंदगी ही खतरे में नहीं पड़ेगी सभी समुदाय संकट में होंगे|

छतीसगढ़ बचाओ आन्दोलन के संयोजक आलोक शुक्ला, वरिष्ट समाजवादी नेता आनंद मिश्रा की अध्यक्षता मेंहुए इस संकल्प सम्मलेन का संचालन करते हुए किसान नेता नन्द कश्यप ने बताया कि किस प्रकार से धान बोने पर मुख्यमंत्री एक बयान देते है तथा मुख्य सचिव ठीक उसके प्रतिकूल बोलते है| लगता है राजनीतिक नेतृत्व नपुंसक हो गया है|

इस संकल्प सम्मलेन को संबोधित करने वालों में छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन, जिला किसान संघ राजनांदगांव, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा (मजदूर कार्यकर्त्ता समिति), अखिल भारतीय किसान सभा (छत्तीसगढ़ राज्य समिति), छत्तीसगढ़  किसान सभा, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति (कोरबा, सरगुजा), किसान संघर्ष समिति (कुरूद), आदिवासी महासभा (बस्तर), दलित आदिवासी मजदुर संगठन (रायगढ़), दलित आदिवासी मंच (सोनाखान), संयुक्त किसान संघर्ष मोर्चा (कांकेर),पेंड्रावन जलाशय बचाओ किसान संघर्ष समिति (बंगोली, रायपुर), भारत जन आन्दोलन सरगुजा व गाँव गणराज्य अभियान (सरगुजा), जनाधिकार संगठन (कांकेर), मेहनतकश आवास अधिकार संघ (रायपुर), जशपुर जिला संघर्ष समिति, भारतीय खेत मजदूर यूनियन (छत्तीसगढ़ राज्य समिति), राष्ट्रिय आदिवासी विकास परिषद् (छत्तीसगढ़ इकाई, रायपुर), छत्तीसगढ़ किसान महासभा, उर्जाधानी भू –विस्थापित कल्याण समिति (कोरबा), उधोग प्रभावित किसान संघ (बलोदाबाजार) शामिल रहे|

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