20 साल से आवेदन देकर थक चुके थे ग्रामीण जब खुद सडक बनाने की ठानी तो प्रशासन ने डाला जेल में
प्रशासन की दोहरे कार्यवाही व विकास से त्रस्त कावापाल के आदिवासी अब
संविधान की लड़ाई के मूड में
कावापाल
के सरपंच,माटी पुजारी,सिरहा व 6 स्कूली बच्चो सहित 56 आदिवासी जेल में क्योकि इन्होने भाजपा राज में विकास करने की जहमत उठाई
बस्तर - बस्तर
संभाग के तहत बस्तर जिले के अंतर्गत ग्राम कावापाल इन दिनों
अखबार की सुर्खियों में है, कावापाल
के सरपंच,माटी
पुजारी,सिरहा व 6 स्कूली बच्चो सहित 56 आदिवासी जेल में है, ये आदिवासी जेल में इसलिए है कि
इन्होने विकास का जहमत
उठाया वही विकास जिसे केंद्र की मोदी सरकार से लेकर राज्य की रमन सरकार ढिढोरा
पिटते रहती है 70 सालो में
विकास नामक चिड़िया का ग्राम के आदिवासियों ने शक्ल तक नही देखी है, न पीने के लिए पानी है, न चलने के लिए सडक और न ही जगमगाती
बिजली, सडक मार्ग
दुरुस्त करने के लिए ग्रामीणों ने संविधान के अनुच्छेद 244(1) व नवी अनुसूची पंचायत राज अधिनियम 1996 के अनुसार ही पारम्परिक ग्राम सभा कर
सड़क निर्माण करने हेतु 753 पेड़ काटे
थे, कावापाल
ग्राम बस्तर संभाग के जगदलपुर से मात्र 30 किमी की दुरी पर स्थित है, बस्तर की विकास की झूठी तस्वीर यहा
साफ़-साफ दिखाई देती है दर्जनों आदिवासी स्वास्थ्य सेवा न मिलने के चलते मौत के
मुंह में समा गए है, बारिश के
दिनों अथवा रात में किसी ग्रामीण को अगर बिमारी हो गया तो उसका मृत्यु तय है बारिश अथवा रात में मोटर साइकल चलाना
मुश्किल है. दो बार गाँव के बीमार लोगों को अस्पताल में मौत हो गई तब लाश को
पहुंचाने गई शव वाहन बीच जंगल में सड़क नहीं होने के कारण लाश उत्तार कर भाग निकले
दूसरे दिन ग्रामीण लकडी की काठी बनाकर लाश को गांव पहुचाये। शिक्षा की बात करे तो
एक प्राइमरी अथवा मिडिल स्कूल ग्राम में मौजूद है लेकिन गुरूजी दर्शन नही देते
क्योकि गांव पहुँच
मार्ग नही है.
ज्ञात हो
कि बस्तर संभाग के माचकोट वन क्षेत्र अंतगर्त कावापाल ग्राम के ग्रामीणों ने 7 किमी सडक बनाने के लिए 20 सालो से फारेस्ट ने अनुमति नही दी, विभाग रिजर्व फारेस्ट क्षेत्र बताता
रहा जब ग्रामीणों ने विकास की चाह में पेड़ काटे तो उन्हें जेल में डाल दिया
गया.जबकि वही वन विभाग नगरनार स्टील प्लांट के लिए शबरी नदी से पानी पाइप लाइन के
लिए 30 किलोमीटर 10 फिट चौड़ाई में 6000 पेड़ काटने की अनुमति दे दी गई। इस पाइप
लाइन से आदिवासियों की कोई नफा होने वाला नहीं है। आदिवासी प्राक्रतिक प्रेमी होते
है वो जंगल, पहाड़ो, झरनों से आत्मीय लगाव होता है,पेड़ो को पूजते है जंगल की रक्षा करते
है, पौधा रोपड़
का ढोंग नही रचते, वृक्षों
के असली मालिक वही है, जहाँ जहाँ
आदिवासी हैं उन्ही क्षेत्रों में सघन जंगल हैं। यह साबित करती है कि आदिवासी जंगल
के सरंक्षक है। यदि विनाशक होते तो आज तक आदिवासी इलाकों में जंगल गायब हो गये
होते, लेकिन
उन्ही वृक्षो की कटाई के मामले में असंवेधानिक तरीके से उन्हें जेल भेज दिया जाए
तो यह मौजूदा सरकार अथवा प्रशासन का तानाशाही रवेय्या के साथ ही दोहरा मापदंड नजर
आती है।
निर्णय कावापाल में पारम्परिक ग्राम सभा का
प्रशासन
द्वारा सड़क निर्माण नहीं करने से निराश होकर कावापाल में दिनाक 9-9-2017 को पारम्परिक ग्राम सभा का आयोजन किया
गया जिसमे भारत में संविधान के अनुच्छेद 13(3) क 244(1) में निहित विधि के अनुसार ग्राम में
सर्वसम्मती से प्रस्ताव पारित किया गया तथा गांव की जिम्मीदरीन जलनी याया डाँड
रावपेन से पारम्परिक अनुमति प्राप्त की गई, सड़क निर्माण की जद में कटने वाले पेड़ों
की ग्राम वन सुरक्षा व प्रबंधन समिति कावापाल के द्वारा नीलाम कर इस आय का उपयोग
गाँव की विकास योजनाओं में करने का निर्णय लिया गया। ग्राम में पारित प्रस्ताव में
कहा गया गया ग्राम कावापाल से पुसपाल तक सडक मार्ग नही होने के चलते आवागमन अथवा
मूलभूत सुविधाओं के लिए काफी दिक्कत का सामना करना पड़ता है,अब बच्चों की पढ़ाई, इलाज बिजली व दैनिक जरूरत की सामान की
ढुलाई के लिए सड़क का निर्माण पूरे गांव के लोग श्रम दान करके ही रहेंगे। आजादी के 70 सालो बाद भी मूलभूत सुविधओं से
ग्रामवासी वंचित है, ग्राम सभा
के निर्णय में आगे कहा गया कि कावापाल से पुसपाल जाने वाली पगडंडी पर पुरे
ग्रामवासी श्रम दान करके सडक निर्माण करने का निर्णय लेती है,मूलभूत सुविधावो को लेकर कई दफे जिला
कलेक्टर, जन समस्या
निवारण शिविर, जन दर्शन
में प्रशासन को अवगत काराया गया लेकिन सडक निर्माण नही हुआ,
आजादी के 70 साल बाद भी गाँव में बिजली नही है, प्रशासन को अवगत काराया गया तो सोलर
लाइट लगा दिया गया जो कुछ दिन चलने के बाद खराब हो गया. बिजली नही होने के चलते
ग्राम के बच्चे शिक्षा से वंचित है वो पढ़ नही पाते जिसके कारण पूरा धुरवा समुदाय
विकास से वंचित हो रही है । ग्राम सभा में प्रस्ताव पारित किया गया कि जिला
कलेक्टर एक माह के अंदर बिजली सेवा प्रदान करे, प्रस्ताव में यह भी कहा गया कि देश के
प्रधानमन्त्री डिजिटल इण्डिया की बात कहते है लेकिन ग्राम में मोबाइल नेटवर्क नही
है कावापाल में 310 ग्रामीणों
ने हस्ताक्षर अंगूठा लगा कर ग्राम सभा के प्रस्ताव को प्रशासन को सूचना दी गई फिर
भी कोई सकारात्मक कदम नहीं लिया जाना संवेदशील क्षेत्र की प्रशासनिक निरंकुशता की
ओर इशारा करती है।
विकास की गुहार लगाते रहे कावापाल के
आदिवासी ग्रामीण
केंद्र
अथवा राज्य सरकार विकास के अनेको दावे करती है, विभिन्न योजनाए आदिवासियों के लिए लागू
करने की कहानी रची जाती है, विकास के
तमाम योजनाए कावापाल में फिसड्डी साबित होते है, ग्रामीण स्वयं मूलभूत सुविधाओं की
गुहार लगा रहे है लेकिन प्रशासन मूक दर्शक बनी रहती है सरकारे विकास के थोथे वादों
तक सिमित रह जाते है आप को बता दे कि कावापाल के ग्रामीणों ने 27 जून 2016 को जनदर्शन में आवेदन देकर सडक निर्माण
की गुहार लगा चुके है लेकिन ग्रामीणों का आवेदन रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया, ग्रामीणों ने थक हार कर सडक निर्माण का
स्वयं जहमत उठाया और पेड़ कटाई कर सडक निर्माण करने लगे, लेकिन प्रशासन ने सरकारी सम्पति क्षति
अथवा वन सुरक्षा अधिनियम के तहत 56 आदिवासी ग्रामीणों को जेल में डाल दिया गया. आज तक वन विभाग बस्तर क्षेत्र
में लकड़ी तस्करों को नान बेलेबल धाराओं में कोई कार्यवाही क्यों नहीं की??? वन विभाग द्वारा जंगलों से गोला
निकालने के लिये बड़े बड़े वृक्षों को काट कर सड़क बनाती है ताकि गोला निकाल कर बेच
सके तब क्षति निवारण अधिनियम किसके ऊपर लगती है??? जगदलपुर से कांकेर तक सड़क चौड़ीकरण के
नाम पर 10000 पेड़ काटे
गये तब वन विभाग राष्ट्रीय सम्पदा क्षति निवारण अधिनियम के तहत किसके ऊपर
कार्यवाही हुई???कौन जेल
गया??? बस्तर
संभाग के तहत कितने सड़क एक भी वृक्ष बिना काट के सड़क बनाया गया है??? यदि वृक्ष काट कर सड़क बनाया गया है तो
उस सड़क निर्माण करने वाले अधिकारी ठेकेदार के विरुद्ध भी राष्ट्रीय सम्पदा क्षति
निवारण अधिनियम के तहत कार्यवाही की जाये कावापाल के आदिवासियों ने कहा कि उनके
लिए यह अधिनियम क्यों लागू नहीं होती???जबकि हमने प्रशासन की बेरुखी से हतास
होकर गांव के भविष्य की उन्नति के लिये सड़क निर्माण की पहल पारम्परिक ग्रामसभा के
निर्णय के अनुसार ही किये हैं। साथ ही प्रशासन से यह जवाब भी चाहिए की हमारे गांव
तक सड़क का निर्माण क्यों किस अधिनियम के तहत नहीं किया गया है??? बिजली व मोबाइल नेटवर्क किस अधिनियम के
तहत उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है???
सर्व
आदिवासी समाज बस्तर ने कमिश्नर बस्तर को पत्र लिख कर पारम्परिक ग्राम सभा कावापाल
के प्रस्ताव की तथा संविधान में निहित पांचवी अनुसूची की पैरा 5 की अनिष्ठा व अवहेलना बताया, समाज ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 244(1) अनुसार ग्रामीणों पर वन विभाग की
कार्यवाही असंवेधानिक व दोहरा रवैया है. समाज पुरे मामले में संवेधानिक कार्यवाही
के पक्ष में है नव
प्रशिक्षु आई एफ एस मनीष कश्यप जिसे संविधान की पांचवीं अनुसूची की ज्ञान नहीं है
उसकी बड़बोलेपन के कारण ही कावापाल के ग्रामीणों को ट्रक भेजकर राजीनामा करवाया
जाएगा कहकर झूठ बोलकर जगदलपुर लाकर जेल में ठूसा गया है। अब समाज इस अधिकारी के
द्वारा संविधान की 244(1), पांचवी
अनुसूची की पैरा 5 की
अनिष्ठा व उलंघन के एवज में ipc की राजद्रोह की धारा 124क व एट्रोसिटी एक्ट 1989 के तहत
मामला दर्ज करने की मांग की है। इसके बाद भी प्रशासन एफआईआर दर्ज नहीं करेगी तो
न्यायालय में याचिका लगाकर संविधान की उलंघन करने का मामला दर्ज करवाएगा। धुरवा
समाज के पपू नाग व महादेव नाग ने कहा है कि गांव की विकास की कलई खुल गई इसलिए वन
विभाग के द्वारा दोहरा कार्यवाही कर संविधान की उलंघन कर रहे हैं। सर्व आदिवासी
समाज ने असंवैधानिक कार्यवाही को शून्य कर 56 आदिवासियों को तत्काल निरस्त कर मनीष
कश्यप के खिलाफ राजद्रोह व एट्रोसिटी एक्ट के तहत मामला दर्ज कर इस घटना की निर्णय
पारम्परिक ग्रामसभा कावापाल में सड़क नहीं बनाने वाले अफसरों व वन विभाग की जिमेदार अफसरों की उपस्थिति में
लिया जाएगा। विदित है कि अनुसूचित क्षेत्र की पारम्परिक ग्रामसभा को गांव की जल वन
निर्माण की प्रबंधन व उपयोग का पूर्ण संवैधानिक बल प्राप्त है। आप को बता दे बस्तर संभाग अनुसूचित क्षेत्र अन्तर्गत
आता है जहा संविधान की पांचवी अनुसूची लागू है, जहा ग्राम सभा का प्रस्ताव सर्वमान्य
होता है.
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