मावलीभाठा में सम्पन्न हुई संविधान की वार्षिक सेवा अर्जी...
पेसा
कानून के इंजीनियर डॉ. बी.डी.शर्मा ने बुरुंगपाल में ही रह कर लिखा था पेसा कानून, वहा आज भी आस-पास के ग्रामीण संविधान की अर्जी करते है, आदिवासी मूल समुदाय आज भी संवेधानिक लड़ाई के पक्ष में है, संविधान में दिए सारे आधिकारो के तहत अपनी लड़ाई लड़ रहे है, मावलीभाठा वाह स्थल जहा पेसा कानून को लिखा गया था ग्रामीण अब भी उसकी अर्जी(पूजा) करते है..
बस्तर:- बस्तर संभाग के बस्तर जिले के तोकापाल तहसील के बुरुंगपाल पंचायत अंतर्ग्रत मावलीभाठा में है भारत के संविधान की पत्थर गड़ी ।
प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी दिनाँक 27 सितंबर 2017 को बुरुंगपाल पंचायत के आसपास के 50 गांव के आदिवासी अनुसूचित जाति ओबीसी
समुदाय के मांझी मुखिया गांयता पुजारी सिरहा की उपस्थिति मावलीभाठा में देकर गांव की जिम्मीदरीन माता की सेवा अर्जी , मावली माता की सेवा अर्जी के बाद भारत
के संविधान की अनुसूचित क्षेत्र एक्ससीलुडेड कॉन्सटीयूशन प्रावधान लिखित पत्थर गड़ी
की परंपरा अनुसार बुरुंगपाल के माटी गांयता के द्वारा सेवा अर्जी की गई।
जानकारी के अनुसार यह परंपरा विगत 22 सालों से मावली परघाव के दो दिन पूर्व
सम्पन्न की जाती है। गाँव गणराज्य के गायता तिरूमाल कोसरू के द्वारा संविधान पीठ
स्तंभ एवं जिमेदारनीन याया की सेवा अर्जी करने के पश्चात संविधान में
आदिवासीयो व पाँचवी अनुसूचित के प्रावधान अधिकार शक्तियों का वाचन , चर्चा परिचर्चा किया गया एवं वर्तमान
में एक्ससीलुडेड एरिया की संविधान प्रावधान की संवैधानिक सभा पारम्परिक ग्रामसभा
की प्रस्ताव निर्णय की जिला प्रशासन व शासन द्वारा लगातार उल्लघंन पर गम्भीर चिंता
व्यक्त की गई।बूरूंगपाल सरपंच तथा तत्कालीन संघर्ष समिति (1992)के सदस्य एवं पेशा कानून के ड्रापटिंग
कमेटी के सदस्य तिरूमाल सोमारू कर्मा ने उस दौरान पेसा कानून के इंजीनियर डॉक्टर बी•डी•शर्मा के योगदान को याद करते हूये कहा
कि यदि शर्मा जी का सकारात्मक सहयोग नहीं मिलतता तो आदिवासी की जल जंगल जमीन की
लड़ाई कमजोर हो जाती क्योकि "पेशा अधिनियम " इसी धरती "मावली
याया" बूढालपेन " के आदिवासियों की ग्राम गणराज्य की लड़ाई
"मावा नाटे मावा राज" के दहाड़ से बना है इस सच्चाई को बहुत
कम ही लोग जानते हैं कि पेशा कानून बुरूंगपाल में लिखा गया ।उस समय कुछ तथाकथित
दलाल बाहरी लोग हमारी आवाज को दबाने का भरसक प्रयास किया किन्तु हम डिगे नही ।आज
फिर हमारे अस्मिता के साथ खिलवाड़ हमारे रूढ़ी प्रथा कोयतुर संस्कृति रीति रिवाज को
पर संस्कृति करण कर संक्रमित कर खत्म करने की साजिश कूछ दलाल कर रहे हैं हमें सचेत
रहने की आवश्यकता हैं। घोर संघर्ष से हमारे आदिवासी योद्धाओं ने लड़कर एक्ससीलुडेड
एरिया एक्ट जिसे इंडिया गवर्नमेंट act 1935 के कंडिका 91 व 92 में अंग्रेजों ने स्थान दिया प्राप्त
किये। आगे के संविधान में इन्हीं एक्ससीलुडेड एरिया को अनुसूची पांच व अनुच्छेद 244 (1) में स्थान दिया गया। एक्ससीलुडेड एरिया
आदिवासियों की स्वशासन के लिये हैं जिसे हम मावा नाटे मावा राज के नार बुमकाल के
नाम से जानते हैं जिले सरकार ने ग्रामसभा का नाम दिया है। कर्मा ने समाज के युवाओं
को आगाह करते हुए कहा कि लोकतंत्र की जड़ जन के मन में व गांवों में है। यह जन की
लोकतंत्र पर आदिम समय से ही ग्रामसभाओं की भूमिका से होती है। लेकिन वर्तमान में
सरकार द्वारा एक्ससीलुडेड क्षेत्रों की संवैधानिक प्रावधानों की खुलमखुला उल्लघंन
किया जा रहा है मतलब लोकतंत्र की हत्या की जा रही है। जबकी सरकार को लोकतांत्रिक
व्यवस्था को मजबूत करना चाहिए। अनुच्छेद 13(3)क, 19(5,6),25, 244(1), 275,
330,332,340,342 की मूल
भावना से परे कार्य हो रही है जो कि भावी पीढ़ी के लिये खतरे की घण्टी है। सरकार व
जिला प्रशासन को चाहिए कि जनता के लिए स्थापित प्रावधानों की पूर्ण पालन करे। इस
कार्यक्रम में पेसा कानून ड्राफ्टिंग कमेटी के तत्कालीन सदस्य सुलो पोयाम, डोले कर्मा उपस्थित थे। सर्व आदिवासी
समाज के कार्यकारी अध्यक्ष बलदेव मौर्य ने कहा कि प्रशासन शासन एक्ससीलुडेड
क्षेत्र की संविधान का पालन नहीं करने के कारण ही इन क्षेत्रों की समग्र विकास
नहीं हो रही है और असंवैधानिक लोग बजट की लूट कर रहे हैं। संविधान के प्रावधानों
की अनुपालन नहीं होने के कारण ही तीन स्तरीय पंचायत व्यवस्था में स्वशासन की मूल
भावना ही गायब है। एक्ससीलुडेड क्षेत्र में संविधान का उल्लंघन के कारण ही युद्ध
जैसे हालात बन गई है। इसका समाधान अनुसूचित क्षेत्र की प्रावधानों को पूर्ण रूप से
लागू करने से 6 माह में
हालात सामान्य हो जाएगा। अनुसूचित क्षेत्र में नगरीय निकाय असंवैधानिक है शासन
प्रशासन अनुच्छेद 243zc का
उल्लंघन कर रही है। आदिवासियों के विकास के लिये 275 की फण्ड का बंदरबांट की जा रही है।
सुलो पोयाम ने कहा कि जिला प्रशासन ने पेसा कानून की मूल सिद्धांत को ही
खत्म कर रही है पेशा कानून के अनुसार किसी भी ग्राम पंचायत में सरपंच पंच व सचिव
बड़े नहीं हैं पारम्परिक ग्रामसभा बडी होती है। ग्रामसभा के निर्णय सर्व मान्य व
सर्वोच्च हैं लेकिन आजकल इसके उलट व्यवस्था जिला प्रशासन द्वारा सरपंच व पंच को
बड़ा बता दिखाकर ग्रामसभा के प्रस्ताव निर्णय को अमान्य किया जा रहा है जो कि
संविधान के विपरीत है। सरपंच एक मात्र जनता के प्रतिनिधि हैं लेकिन यहां तो सरपंच
तानाशाही व्यवस्था को लेकर पनप रहे हैं क्योंकि जिला प्रशासन उन्हें गलत दिशा दे रही
है । इसी के कारण भूमि अधिग्रहण, योजनाओं का निर्माण, में फर्जी
ग्रामसभाओं के द्वारा या बन्दूक के नोक पर प्रस्ताव बनाया जा रहा है जिससे जनता की
विश्वास लोकतंत्र के ऊपर से डिगने लगी है जो कार्य गांव की जनता ने अस्वीकार कर
दिया उसे कैसे थोप दी जाती है यह बहुत ही गम्भीर संकट है । सबसे दुर्भाग्य यह है
कि यह हत्या सरकार के नुमाइंदे जो कि भारत सरकार की सेवार्थ हैं वे ही जनता की
लोकतांत्रिक अधिकार की हत्या कर रहे हैं। इस कार्यक्रम में सर्वआदिवासी
समाज बस्तर जिला के पदाधिकारी, स्थानीय विधायक, कोया कुटमा, अनुसूचित जाति, ओबीसी समाज के पदाधिकारी व सदस्य
3000 के लगभग
उपस्थित थे। मुख्य रूप से माटी पुजारी कोसरू कोया , तिरू दिपक बैज विधायक चित्रकोट, सुकलो मंडावी, सुलो पोयाम, बलदेव मौर्य, गोवरधन कश्यप,हिड़मो मनडावी, भीमा वटटी, डोले कर्मा , नार मुखिया, सिरहा, पुजारी, टोटम प्रमुख, कोटवार व कोयतुर समुदाय के
हजारों ग्रामीण उपस्थिति थे।
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